Saturday, December 12, 2015

अवसाद Depression

डॉ अमित जी अनिद्रा के बारे में भी बताऊंगा अभी मै अवसाद के बारे में बात करता हूँ। कई बार मन अवसाद ग्रस्त होता है और अपने आप ठीक हो जाता है | लेकिन कई बार अवसाद मन में कहीं गहरे तक बैठ जाता है | इस के तब लक्षण दिखायी देते हैं ---

--दुःख का लगातार अनुभव

---लगातार उर्जा में कमी

--नींद में कठिनाई

--भूख में कमी

--वजन का घटना

---सिरदर्द का रहना लगातार

---अपच कब्ज रहना

---बात बात पर रोना और आत्महत्या की इच्छा होना |


इसके दुष्प्रभाव



-हृदय जन्य बीमारीयाँ


-अस्थमा का दौरा आना


-त्वचा की बीमारी होना


-शरीर मे खून की कमी हो जाना


-चश्मा लगना


-और भी जाने कई सारी बीमारीयाँ।



अब यह किसी एक वर्ग को हो यह जरुरी नही है। पढने वाले बच्चे परीक्षा के डर से , या नम्बर कम आने के डर से इस अवस्था में आ जाते हैं .महिलायें पुरूष कोई भी किस समय इस का शिकार हो जाए कौन जाने।

आयुर्वेदिक चिकित्सा में दवाई के बिना रोगी को ठीक करने की कोशिश होती है।
कई तरह के योगासन ,प्राणायाम ,संतुलित आहार पेट पर मिटटी की पट्टी ,रीढ़ स्नान ,आदि ऐसे कई उपाय है जिनसे पुनः सामन्य जीवन जीया जा सकता है | यह सभी उपाय किसी आयुर्वेदिक
मनोचिकित्सक की देख रेख में करने चाहिए |
अक्सर कई बार हम अवसाद ग्रस्त रोगी की बात को अनसुना कर देते हैं | वास्तव में ऐसा होना नही चाहिए , उसकी बात सुने उसकी मदद करे ताकि वह आत्महत्या जैसा विचार अपने दिल में पनपने न दे | उसको यह विश्वास दिलाये कि आप उसके साथ है वह अकेला नही है | खुली हवा अच्छा वातावरण ,उसमें उसका आत्मविश्वास वापिस ला सकता है।

मैंने एक सेल्फ मेडिटेशन पैकेज बनाया है जो बहूत हद तक कारगर है, अगर किसी कारणवश यह काम नही करता फ़िर आपको रेगुलर मेडिटेशन कोर्स सीखना पड सकता है।


प्रथम चरण


आराम से बैठ या लेट जायें... ५ बार गहरी साँस ले, आँखे हल्की बन्द करें, और बस कुछ देर के लिये अपने दिमाग मे आने जाने वाले विचारो को देखते रहें। उनको पूरी तरह से महसूस करें। फ़िर ५ बार गहरी साँस ले उठ जाये। कुछ दिन तक यह प्रयोग करें।



दूसरा चरण


आराम से बैठ या लेट जायें... ५ बार गहरी साँस ले, आँखे हल्की बन्द करें, अब याद करे उन बूरे दिनो को, जिनके कारण आप परेशान हैं, जितना बूरा वक्त बीता है सबको... और सोचे कि ऐसा नही होता तो क्या होता? फ़िर ५ बार गहरी साँस ले और उठ जायें।


तीसरा चरण


आराम से बैठ या लेट जायें... ५ बार गहरी साँस ले, आँखे हल्की बन्द करें, अब अपने अच्छे दिनो को याद करें, हर इन्सान के जीवन मे अच्छे और बूरे दिन दोनो ही आते हैं, बूरे पर तो हम याद कर चूके हैं, अब अच्छे पलो की बारी है, जितना याद आये याद करें, कोई जल्दी नही है, आराम से धीरे धीरे आगे बढे और बढते जायें, फ़िर ५ बार गहरी साँस ले और उठ जायें।


अन्तिम चरण


अब तक आप समझ गये होंगे कि निराश होने वाली कोई बात नही है, जिन्दगी मे अभी आशा कि किरण बची है, तो अपने उस किरण को सोच का रूप दे डालिये।


आराम से बैठ या लेट जायें... ५ बार गहरी साँस ले, आँखे हल्की बन्द करें, अब अपने उस सोच को मन मे बार बार दूहराते जाईये.. जितना हो सके.. कोई जल्दी नही है.. आराम से... फ़िर ५ बार गहरी साँस ले और उठ जाईये। अब यही अन्तिम चरण आपको रोज करना है :)


मेडिटेशन का यह रेखाचित्र मात्र था.. आप अपने लिये सही शब्दो का चुनाव करे, या कोई परेशानी हो तो हमसे सम्पर्क करें।


अगर कोई इन्सान अत्यन्त अवसाद मे डूबा है तो बेहतर होगा कि उसको पहले ऊर्जा चिकित्सक से मिलवायें, उसके बाद मेडिटेशन करायें।

डॉ कुलदीप सिंह चौहान,
आयुर्वेद मनोचिकित्सक एवं पंचकर्म चिकित्सक,
मर्म-थेरापिस्ट।
9411036703
Ayurjeevanam. blogspot.com
www.Ayurjeevanam.in
Therapistmarma.blogspot.com

Common Psychological diseases

हेल्थ टुडे परिवार के सदस्यों कल की जानकारी को आगे बढ़ाते हुए कुछ और मानसिक रोगों की जानकारी प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। यदि किसी को कोई लक्षण स्वयं में महसूस होते हो तो मुझसे या फिर किसी मनोचिकित्सक से सलाह जरूर ले लेकिन अपनी तरफ से कोई धारणा ना बनायें।
डॉ कुलदीप सिंह चौहान, आयुर्वेदिक मनोचिकित्सक।

हिस्टिरिया-

हिस्टिरिया का मानसिक रोग प्रायः अतृप्त कामेच्छा से सम्बन्ध रखता है। अविवाहित स्त्रियाँ या निःसंतान वधुएँ इसकी शिकार बनती हैं। शारीरिक कमजोरी, अत्यधिक घबराहट, उत्तेजना, उद्वेग, आकस्मिक दुःख मस्तिष्क के संतुलन को अस्त-व्यस्त कर देते हैं और अज्ञात चेतना की अतृप्त वासनाएं भयंकर विस्फोट कर देती हैं।

अन्यमनस्कता-

इस प्रकार की भ्रमित मानसिक स्थिति में रोगी, न उत्तेजित रहता है, न निरुत्साहित। वह बिल्कुल अन्यमनस्क रहता है। उसका मन शून्य मय हो जाता है। चेतना विचार, बुद्धि कुछ काल के निमित्त बिल्कुल स्थिर हो जाती है। जहाँ बैठा दो, वहीं निष्प्रभ, निश्चेष्ट बैठा रहेगा। न कुछ इच्छा प्रकट करेगा न अभिलाषा। उसकी मुख मुद्रा से यह स्पष्ट नहीं होता कि आखिर वह चाहता क्या है। यदि उससे कुछ पूछो तो वह सुनी अनसुनी कर देता है या बड़ा बेढंगा, अपूर्ण, अस्पष्ट, निरर्थक उत्तर देता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की मानसिक न्यूनताएँ, मस्तिष्क के विभिन्न क्रिया-केन्द्रों की समुचित परिपक्वता न होने से यह व्याधि उत्पन्न होती है।

आत्मग्लानि-

“हमसे कोई महापाप हो गया, अब मोक्ष नहीं हो सकता, मैंने सर्वनाश कर लिया, इतनी भारी गलती करके मुझे जीवित नहीं रहना चाहिए”- ऐसे विचारों को लेकर रोगी बड़ा पछताता दुःखी होता है। कुछ दिन पूर्व हमारे पास एक ऐसा ही रोगिणी आई थी जिसे बीमारी में कुछ अपवित्र दवाइयाँ दी गई थीं। वह कहा करती थी “मैंने बकरे खाये हैं, उनकी हड्डियों को चबाया है, अक् थू अक् थू।” ऐसा कहकर वह थूकती और हलक में उँगली डालकर उल्टी करने का उपक्रम करती।

आत्म-हीनता (Inferiority)-

अनेक व्यक्ति इतने संकोची, लज्जाशील होते हैं कि महान अपराधी की तरह चुप्पी धारण किए रहते हैं और हमेशा नीची दृष्टि किए रहते हैं। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ करता है कि संसार उनकी प्रत्येक क्रिया, प्रत्येक हाव-भाव, कपड़े, जूते, टोपी सब कुछ घूर-घूर कर देख रहा है, जैसे पत्थर-पत्थर में हजारों नेत्र हों और सबकी सब उसे हड़प जाने को प्रस्तुत हों। आत्महीनता का प्रधान कारण भय है। रोगी के मानसिक संस्थान में उसका अंश अत्यन्त अधिक मात्रा में होता है। वह सब प्रकार की सभा समाजों, मनुष्यों की भीड़ से हटता है, हमेशा शर्मिंदा रहता है और अपने आपको दीन, हीन, दुर्बल, क्षुद्र, अपराधी मानता है। यह बड़ा अविश्वासी होता है। आत्महीनता के लक्षण ये हैं- आंखें नीची कर लेना, सकपका जाना, चेहरे पर सुर्खी दौड़ जाना, घबरा सा जाना, किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाना, चुपचाप दूसरे की अनुचित बातें स्वीकार कर लेना, उदासीन गंभीरता धारण कर लेना। ऐसे रोगी को अपने छोटे-मोटे दोष अक्षम्य अपराध की तरह दीखने लगते हैं और कई बार दारुण मानसिक यातना भोग कर रोगी आत्महत्या तक कर लेता है।

कायरता-

एक प्रकार की कुत्सित मानसिक दुर्बलता है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक कार्य को संदिग्ध चित्त से सम्पन्न करता है। मनोवैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि कायरता जन्मजात दुर्गुण नहीं है। कायरता एक प्रकार की आदत है और क्रमशः धीरे-धीरे और आदतों के समान उत्पन्न होती है। अव्यक्त प्रदेश में अनेक वर्षों में संकलित अशुभ संस्कारों का परिणाम है। कायरता तथा निराशावाद साथ-साथ रहती हैं। कायर मनुष्य जरा-जरा सी बातों में दब कर नर्क की यन्त्रणाएँ भोगा करता है।

भय-

परमात्मा ने मनुष्य को वीर और साहसी बनाया था किन्तु संसार में अनेक मनोजनित शंकाओं ने उसे डरपोक बना डाला है। प्रत्येक असफलता और प्रायः सब दोषों के अन्त में किसी न किसी प्रकार का भय मिला रहता है। भय शंका का किला है। भय के कारण मस्तिष्क की कार्यवाहिनी शक्ति विकृत अथवा संकुचित हो जाती है इससे केन्द्रित मंडल में उत्तेजना होती है और चक्कर आना, अपचन, मस्तिष्क पीड़ा, अस्थिरता, उत्पन्न होती है। जरा-जरा सी प्रतिकूलता से वह उद्विग्न हो जाता है और उसके दिमाग में क्रोध, ईर्ष्या, चिंता, अशाँति, घबराहट, चंचलता, आशंका, अनिष्ट प्रस्फुटित हो जाते हैं।

सनक (श्वष्ष्द्गठ्ठह्लह्द्बष्द्बह्लब्)-

सिरड़ीपन, बोरहा पन अव्यक्त के अशुद्ध संस्कारों के परिणाम स्वरूप अस्थिर चित्तवालों में उत्पन्न होता है। यह शैशवावस्था की दबाई गई प्रवृत्तियाँ को प्रकाशन है। आरम्भिक दमन क्रिया से (Repression) अज्ञात चेतना में कुछ भावना ग्रन्थियाँ बनती हैं और ये सुप्त मनोवृत्तियाँ समय-समय पर उमड़ कर ऊपर जाग्रत चेतना की सतह पर पहुँचने की चेष्टा करती हैं। उन्हें गुप्तवेश धारण करना पड़ता है। सनक इन्हीं दलित भावनाओं का निदर्शन है। वास्तव में यह हमारी अज्ञात चेतना से उठे हुए मनोविकारों को समूह मात्र है।

कामातुरता (Sexual Obsession)-

कितने ही व्यक्तियों के मन में कामुकता के विकार बड़े तीव्र उठते हैं। वे क्षण भर में समस्त पवित्रता, ज्ञान, शिक्षा इत्यादि भूल जाते हैं और हृदय मलीन विचारों से आवृत्त हो जाता है। कामविकार एवं नैतिकता के भीतरी संघर्ष से मनुष्य छटपटाने लगता है। अन्तर्द्वन्द्व परोक्ष रूप में विभिन्न रूपों में प्रस्फुटित होता है और दैनिक कार्यों में अनेक विकृतियां उत्पन्न होती हैं। अतृप्त कामवासना, प्रमाद नपुँसकता, वैराग्य की व्याधियाँ सृजन करती है। विकारमय अनिष्ट विचार मानसिक दुर्बलता की वृद्धि करते हैं। भद्दे मजाक, गालियाँ, गुप्ताँग का बारंबार स्पर्श करना, अश्लील व्यवहार, गंदी चेष्टाएँ, अति बनाव शृंगार, गाने गाना, स्वप्नदोष, बारबार मूत्र त्याग, मुंहासे, दुराचार, चित्त का अति चंचल रहना, क्षण-क्षण अपने विचारों का परिवर्तन करना, दिमाग में गर्मी छा जाना, नेत्रों में जलन, क्षण भर में रुष्ट एवं क्षणभर में प्रसन्न हो जाना, माथे, कमर तथा मेरुदंड में दर्द, दाँत के मसूड़े फूलना। शरीर से बदबू निकलना, कँपकँपी आना, हाथ पैर में सनसनी दौड़ जाना, अज्ञात चेतना में छुपी हुई अतृप्त अशान्त कुचली हुई वासनाओं से उत्पन्न होते हैं। पर छिद्रान्वेषण तथा (Projection) आरोप-

अनेक व्यक्ति पर दोषदर्शन, परनिंदा, बैर, ईर्ष्या की भट्टी में भस्मीभूत हुआ करते हैं। वे अपने मानसिक दोष दूसरों में परिलक्षित देखते हैं और उन दूसरों के कल्पित दोषों को अपनी कठिनता एवं असफलता का मूल कारण मानते हैं। यह स्वार्थ का नग्न स्वरूप है। इस मनोवृत्ति के कारण हम निरन्तर अपने दोष दूसरों पर आरोपित किया करते हैं अनेक व्यक्ति अकारण ही द्वेषी होते हैं यों ही संत-साधु-शास्त्र इत्यादि का विरोध किया करते हैं। ईश्वर का खंडन करने वाले, दम्भी, अभिमानी, पर निंदा परायण, अन्यायकारी व्यक्ति एक भयंकर मानसिक व्याधि के शिकार हैं, उन्हें चहुँ ओर दोष, न्यूनता, कमी ही दृष्टिगोचर होती हैं। यह मनोवृत्ति स्वार्थपूर्ण ईर्ष्या की सन्तान हैं तमोगुणी प्रधान व्यक्ति इससे परेशान रहते हैं।

विकृत मानसिक प्रवृत्ति (Obsessive neuroses)

यह मानसिक कष्ट मस्तिष्क के केन्द्रों में निर्बलता होने से उद्भूत होता है। रोगी का अंतर्जगत अत्यन्त आवेग मय होता है किन्तु वह क्षोभ में निरन्तर जला करता है। जरा-जरा सी बातों में शंका, दुःख, संदेह उसके मानसिक केन्द्रों को घोर अंधकाराच्छादित बना कर उसे परेशान रखते हैं। अज्ञानावस्था में ही उसके मिथ्या डर, शोक, पीड़ा उत्थित होकर उसे अशान्त और विक्षुब्ध रखते हैं। चेतना में किसी विरोधी शंका के प्रविष्ट होते ही वह कुढ़ने लगता है और अस्त-व्यस्त हो जाता है।

गुमसुम हो जाना (Apathy)-

भयंकर मानसिक आघात से यकायक मानसिक शून्यता उत्पन्न हो जाती है। रोगी का अन्तःकरण अकस्मात अंधकारमय हो जाता है। चेतना, बुद्धि, विवेक, तर्क, प्रेरणा अपने कार्य कुछ देर के लिए बन्द कर देती हैं और वह किंकर्तव्य विमूढ़ सा होकर न बोलता है, न क्रिया करता है, न उसे संसार में ही कुछ दीखता है। यद्यपि उसके नेत्र खुले रहते हैं किन्तु वह खोया-खोया सा प्रतीत होता है- जैसे उसके मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को लकवा मार गया हो। कभी-कभी ऐसे मानसिक आघातों से रोगी जीवन पर्यन्त शून्य मनस्क रह सकता है। इस विकृति में श्रवण, स्मरण एवं ग्रहण शक्ति का ह्रास हो जाता है।

मानसिक थकावट (Mental over-strain)-

अन्तर्द्वन्द्व, चिंता, उद्वेग, निरंतर एक ही प्रकार का मानसिक कार्य करते रहना। उसे बोझ समझ कर करते रहना, अस्त-व्यस्त मानसिक अवस्था में पढ़ना] लिखना, अधिक बोलना, एकान्त स्थान में लगातार बैठ कर पढ़ते रहने से मानसिक थकावट उत्पन्न होती है। सर में दर्द, मन में निष्क्रियता होने लगती है, किसी काम में जी नहीं लगता। रोगी जो कार्य हाथ में लेता है उसी से जी उचटता है। वह इधर-उधर निष्प्रभ सा घूमता है। उसे ऐसा अनुभव होता है जैसा पर्वतों का बोझ उसके मन पर हो। जीवन के वे क्षण उसे बोझ स्वरूप प्रतीत होते हैं। कई दिन तक वह विक्षुब्ध, उद्विग्न एवं चिंतित सा दिखाई देता है।

भयंकर स्वप्न-

स्वप्न हमारी हार्दिक इच्छाओं सूक्ष्म भावनाओं, अनुभूतियों, अतृप्त अपूर्ण मनोवांछाओं, यातनाओं, शारीरिक कष्टों का क्रियाशील अस्तित्व है। हमारी दलित वासनाओं से इसका चिरस्थायी, अटूट तथा शाश्वत सम्बन्ध है। यह एक ऐसा दर्पण है जिसके विश्लेषण द्वारा हमें मनुष्य के मानसिक कष्टों का परिचय हो सकता है। जब मानव, दानवीय यातनाओं, शारीरिक कष्टों और साँसारिक चिंताओं से आवृत रहता है तो उसे बड़े-बड़े भयंकर स्वप्न दीखते हैं, वह चिल्लाने की कोशिश करता है, घिग्घी बँध जाती है और उसे अत्यधिक मानसिक क्लेश होता है। दुश्चिंता, शारीरिक अपवित्रता, मद्य माँस, तामसिक भोजन, अतृप्त कामेच्छा, कल्पित भय, भूत प्रेतों का डर, तंग कपड़े, मानसिक दुर्बलता, रौद्र स्वप्नों के प्रधान कारण हैं।

प्रमाद (Insanity)-

इस रोग में रोगी का मानसिक संतुलन विकृत हो जाता है। पागल यह नहीं समझता कि वह रोगी है। उसे यह अनुभव तक नहीं होता कि उसके मानसिक क्षेत्र में कुछ परिवर्तन हुआ है। प्रमाद अधिकतर किसी भयंकर आघात (Shock) जैसे किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, व्यापार में भारी हानि, अत्यधिक भय, बुरा व्यवहार, अतृप्त कामेच्छा, प्रेम में सन्देह, पति के द्वारा अत्याचार इत्यादि कारणों से होता है। अव्यक्त की क्रान्तिकारी वासनाएँ विद्रोही होकर अकस्मात विद्रोही बन जाती हैं।

निद्रित अवस्था में चलना फिरना (Somnambulism)-

रोगी निद्रावस्था में ही चलता फिरता, उठता बैठता, तथा अनेक आश्चर्यजनक कार्यों को सुचारु रूप से सम्पन्न करता है जिनके सम्बन्ध में कोई जानकारी उसे जाग्रत अवस्था में नहीं रहती। डा. मेचनिकाफ ने सैम्बुलिज्म के एक रोगी का वातान्त लिखा है-”जो एक बार किसी अज्ञात आशंका से भयभीत होकर पनाले के पाइप को पकड़ता हुआ एक बहुत ऊँचे मकान की छत पर चढ़ गया तथा एक मुंडेर पर से दूसरे पर बन्दरों की तरह कूदता हुआ दूसरे मकान की मुँडेर पर कूद गया। इसके अनन्तर जिस प्रकार ऊपर चढ़ा था, उसी प्रकार बन्दर की तरह बिना किसी खरोंच के नीचे उतर आया। न तनिक भी उसका पाँव फिसला, न किसी प्रकार की चोट आई। इस उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सोम्नेम्बुलिज्म की अवस्था में उस व्यक्ति की अज्ञात चेतना में लाखों वर्षों से दबे हुए मनुष्य के वानर जातीय संस्कार जग पड़े थे।”

अनिद्रा या इन्सोमिनिया-

एडलर महाशय अनिद्रा को स्वयं तो रोग नहीं मानते किन्तु आने वाले किसी भयंकर मानसिक कष्ट की उपस्थिति का लक्षण मानते हैं। रोगी अत्यन्त चिंतित, विक्षुब्ध एवं परेशान रहता है और बिस्तर पर पड़े-पड़े निद्रा की प्रतीक्षा देखा करता है। प्रायः इन्सौमिनिया का रोगी अपने आन्तरिक क्लेश इतने बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन करता है कि चिकित्सक को संदेह हो जाता है कि कहीं वह केवल बहाना तो नहीं कर रहा। अत्यधिक चिंता, भय, उलझनें, कर्त्तव्य की जिम्मेदारी, आत्म सम्मान की रक्षा, मन पर अपनी प्रभुता जमाना, आत्म हीनता की भावना ग्रन्थि, कमरे का दूषित वातावरण, उदर में गड़बड़ी, किसी अंग में चोट, आँख दुखना, बुखार आना आदि सब कारण अनिद्रा की मानसिक व्याधि उत्पन्न करते हैं।

with warm regard's
Dr.Kuldeep singh chauhan
BAMS MD, panchkarm & psychiatrist
Marma Therapist
supar spacialist- chronich & psycho deseas.
Rampur, Uttar Pradesh, india
Mob:09411036703⁠⁠[12/12/2015,

मानसिक रोग : Psychological diseases

रोगों के प्रकार और उनका वर्गीकरण
(Kinds of disease and their classification)

आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य की दृष्टि से हमारे शरीर के रोगों के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित किया है जो निम्न हैं-

आध्यात्मिक।
मानसिक।
शारीरिक।

Ayurved classified different aspects of the disease of our body in he point of view of health which has been given below-

Spiritual
Mental
Physical

आध्यात्मिक रोग : शरीर, मन और आत्मा का ऐसा घनिष्ठ सम्बंध होता है कि जो लोग शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे। उनकी आत्मा भी स्वस्थ होगी। इस संसार को बनाने वाले ईश्वर में अविश्वास करना ही सबसे बड़ा आध्यात्मिक रोग होता है। असत्य बोलना, अज्ञानता आदि रोग भी इसी के अर्न्तगत आते हैं।

Spiritual diseases:           There is a mutual relationship among body, mind and soul. Soul of those persons will be healthy who are healthy physically. Disbelief in the existence of GOD creator of this world is the biggest spiritual disease. Habit of telling a lie and ignorance come in this category too.

मानसिक रोग : मानसिक रोग हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों से भी अधिक खतरनाक और अनिष्टकारी होते हैं। मानसिक रोगों के उत्पन्न होने का कारण विभिन्न प्रकार की छोटी-छोटी सी बातें होती हैं। यद्यपि हम इन छोटी-छोटी बातों को अपने विवेक से सुलझाकर मानसिक रोगों से आसानी से बच सकते हैं। मानसिक रोगों के अन्तर्गत घृणा, प्रतिहिंसा, आलस्य, लोभ, चिंता, अहंकार, निराशा, ईर्ष्या, अज्ञानता, भय, कामलिप्सा, असहिष्णुता, अविश्वास, स्वार्थपरता मानसिक उन्माद और वहम आदि होते हैं।

Mental diseases: Mental diseases are more dangerous and harmful than the bodily diseases for our health. Different kinds of tiny things are responsible for the appearance of mental diseases. We can avoid from such kinds of disease by adopting some tiny precautions and by our patience. Hatred, revenge, laziness, greed, anxiety, proud, dejection, envy, ignorance, fear, involvement in sex, intolerance, disbelief, selfishness, suspicion and mental craziness are some mental diseases.

वैसे तो देखने में मानसिक रोग, शारीरिक रोगों से अलग प्रतीत होते हैं किन्तु उनके कारणों में भिन्नता नहीं होती है। इसके उत्पन्न होने का एकमात्र कारण भी शरीर में उपस्थिति विजातीय द्रव्य होते हैं। जब शरीर में विजातीय द्रव अधिक बढ़ जाता है तो वह पीठ की ओर से रीढ़ की हडि्डयों से होता हुआ मस्तिष्क की कोमल ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करता है। शरीर की जीवनशक्ति के ह्यस और अप्राकृतिक जीवन के फलस्वरूप पाचनशक्ति के खराब होने से विजातीय द्रव्य धीरे-धीरे शरीर में एकत्र होकर मानसिक रोगों को उत्पन्न कर देते हैं। इन रोगों का होना अथवा न होना विजातीय द्रव्य की वृद्धि और मात्रा पर निर्भर करता है। पृष्ठ भाग में विजातीय द्रव्य का भार बढ़ जाने से आमाशय की नाड़ियों, सुषुम्ना आदि पर अधिक प्रभाव पड़ता है जो मानसिक रोगों का प्रमुख कारण होता है। जो व्यक्ति संयमी और सात्विक विचार रखने वाले होते हैं उन्हें मानसिक रोग कम होते हैं।⁠⁠

Thx dr. Amit ji, dears group members, Generally, mental diseases seem quite different than the physical diseases but there is no difference in their causes. Presence of heterogeneous liquids is the only cause of the appearance of diseases in the body. When heterogeneous liquids enhances in the body and affect to the soft and tender senses of mind by the way from back to the backbone, digestion power and vital power of the victim reduces after slowly gathering of the heterogeneous liquids in the body and the victim becomes the victim of mental diseases. Appearance and lack of appearance of such kinds of diseases depends on the quantity of heterogeneous liquids. If weight of heterogeneous liquids increases in the front portion of the body, nerves of the stomach and major nerve get affected very much which are the main cause of mental disease. People who are sober and sincere hardly become the victim of mental diseases.

मेरे अपने अध्ययन के अनुसार मानसिक रोग अथवा मनोविकार शारीरिक स्नायु के मार्ग को अवरुद्ध करके, तन्तुओं को नष्ट करके जीवन शक्ति की क्रिया में बाधक होकर मल को शरीर से बाहर निकलने से रोक देते हैं। इससे शारीरिक रोग अधिक हानिकारक हो जाते हैं। धैर्य का अभाव होना,क्रोधी और चिड़चिडे़ स्वभाव से बुखार बढ़ता है। शरीर में खून की कमी, हृदय रोग, हिस्टीरिया,
स्नायु की दुर्बलता, वीर्य दोष यहां तक कि लकवा और टी.बी. जैसी खतरनाक बीमारियों के उत्पन्न होने का मूल कारण मानसिक विकार ही होते हैं। यह एक सच्चाई है कि हमारे शरीर के लगभग
90 प्रतिशत रोग केवल मानसिक विकार के कारण होते हैं। अब मै आप लोगों को कुछ मानसिक रोगों के बारे में जानकारी देना प्रारम्भ कर रहा हूँ जो की निम्नलिखित हैं। यदि बीच में कोई कुछ पूंछना चाहे तो पूछ सकता है।⁠⁠

भय : भय एक मानसिक रोग है। भय का आघात स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। भय से पीड़ित व्यक्ति की कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है। जब किसी के शरीर में भय की भावना उत्पन्न होती है तो उसका शरीर विष से भर जाता है तथा हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। इससे आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है और कभी-कभी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। भय से पीड़ित व्यक्ति की भूख और प्यास समाप्त हो जाती है तथा दस्त आदि के साथ-साथ विभिन्न शारीरिक विकार हो जाते हैं। भय से व्याकुल रोगी थर-थर कांपते हुए निर्जीव सा हो जाता है।

क्रोध : क्रोध भी एक हानिकारक मानसिक रोग है। इसके विभिन्न रूप होते हैं। जब किसी व्यक्ति को क्रोध आता है तो उसके शरीर में तीव्र विष की उत्पत्ति होती है। क्रोध खून को जला देता है तथा शरीर की सभी ग्रंथियां `एड्रिनलीन` नामक एक विषैला रासायनिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं जो रक्त में मिल जाती हैं। यदि किसी व्यक्ति को अधिक क्रोध आता है तो क्रोध के कारण उसकी पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है तथा भोजन के पाचन में सहायक रस विष में परिवर्तित हो जाता है।⁠⁠

चिंता : हमें किसी भी समस्या के आने पर विचलित नहीं होना चाहिए। यदि हम किसी बात को लेकर चिंतित होते हैं तो इसका हमारे शरीर बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। चिंता करना शारीरिक स्वास्थ्य और सुंदरता का सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाती है। किसी बात का भय होने से चिंता उत्पन्न हो जाती है। चिंता करने से भी क्रोध के समान ही हमारे शरीर के रक्त में रासायनिक परिवर्तन होता है जिसके कारण शरीर का रक्त अशुद्ध होकर सूखने लगता है। जिसके परिणामस्वरूप शरीर सूखकर कांटा हो जाता है। शरीर की त्वचा की चमक समाप्त हो जाती है, होंठों का रंग फीका पड़ जाता है, नाक गीली हो जाती है और गाल भी पिचक जाते हैं। ऐसे रोगियों की पाचन क्रिया शीघ्र ही प्रभावित हो जाती है जिसके कारण व्यक्ति टी.बी. से ग्रस्त हो जाता है। चिंता ग्रस्त रोगी को नींद नहीं आती है और उसे अपना जीवन भार के समान लगने लगता है।

ईर्ष्या-द्वेष : किसी से भी ईर्ष्या-द्वेष रखना मानसिक रोगों के अन्तर्गत आता है। मनोवैज्ञानिकों और आधुनिक औषधि विज्ञान ने अपनी खोजों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि ईर्ष्या-द्वेष शरीर के लिए उतना हानिकारक हो सकता है जितना की तपेदिक और हृदय रोग। ईर्ष्या से हमारे शरीर के रक्त में विष का संचार हो जाता है। जब ईर्ष्या और द्वेष अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाते हैं तो इससे पागलपन उत्पन्न हो जाता है।

वहम (हाइपोकोण्ड्रिआसिस)-

हमारे मनोजनित रोगों में वहम प्रधान है। मानव मन में सन्देह, शंका तथा अहित कल्पना की जो मूल प्रवृत्ति है, वह वहम की जननी है। वह मूढ़ता एवं अज्ञानाँधकार के फल स्वरूप उत्पन्न होता है। मनुष्य अपने विषय में तनिक भी बुराई नहीं सुन सकता। यदि कोई झूठ-मूठ कुछ अप्रिय या चिंतनीय बात कह दे तो उसे अंतर्मन तुरन्त स्वीकार कर लेता है और वह क्रमशः बढ़ता रहता है। अनपढ़, गंवार, अशिक्षित व्यक्तियों तथा विशेष रूप से पुराने विचार वाली स्त्रियों में बहुत वहम होता है। यह दुर्बल चित्त का क्षुद्र मनोविकार है। दुर्बल इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति शंकित होते हैं और अपने वहम के कारण नरक की यातनाएँ भुगतते हैं। ऐसे व्यक्ति कुतर्कवादी, संशयी, अविश्वासी, चिन्तित, निराशावादी, अतृप्त, असंतोषी चित्त के होते हैं

उत्तेजना-(Excitement)

उत्तेजना से मन की प्रकम्पना तीव्र हो उठती है, नसों में यकायक तीव्रता आ जाती है। अन्तःकरण में अनावश्यक धुकपुक मच जाती हैं और किंचित काल के लिए हाथ पाँव फूल जाते हैं। कुछ समय के लिए सम्पूर्ण शरीर आन्दोलित हो जाता है। उत्तेजना का प्रभाव विशेषतः हृदय पर पड़ता है जिसके फल स्वरूप वह निज कार्य यथोचित रीति से नहीं कर पाता। श्वास फूल उठती है और छाती में शूल उत्पन्न होती है। उत्तेजना का मुख्य कारण मन में एकत्रित अनेक प्रकार के मिथ्या भय हैं। वे अनायास ही एकाएक विकृत होकर प्रकट हो जाते हैं और हम थोड़ी देर के लिए अस्त-व्यस्त हो उठते हैं। कपोल कल्पित दुःखों या कोई तीव्र रोमाँचकारी (Sensational) अनुभव, वृतान्त, कविता से मनोविकारों का विस्फोट होता है और मनुष्य को उत्तेजना होती है।⁠⁠

उद्वेग-

उद्वेग मन की अस्त-व्यस्त अवस्था है जो निष्फलता से उत्पन्न निराशा से जन्म लेता है। उद्वेग भय का मुख्य अंग है। इससे मन में बड़ी घबराहट उत्पन्न होती है। मानसिक उद्विग्नता के कारण अनेक व्यक्ति पागल हो जाते हैं। ज्ञान तन्तु की निर्बलता, निश्चय बल की क्षीणता, मनोविकारों का प्रतिकूल दिशा में वेग, रुग्णयकृत के कारण हृत्पिंड या अनहित चक्र में संकोचन-उद्वेग के मुख्य कारण हैं। उद्वेग से जीवन शक्ति का ह्रास होता है, बहुत से भय झूठ-मूठ दिखाया करता है और समस्त जीवन को नीरस बना देता है।⁠⁠

अति चिन्तित अवस्था (Anxiety state)-

अनहोनी, अनिष्ट, बुरी बातों की थोथी कल्पनाएँ दूसरों की बुरी हालत देखकर स्वयं अपने लिए भी वैसी ही स्थितियों को स्मृति पटल कर पुनः पुनः लाना, अपनी व्याधियों को कल्पित जगत में उद्दीप्त करके देखना, अनुचित बातों से कल्पना लोक में सामंजस्य स्थापित करना, चिंता के मुख्य कारण हैं। व्यर्थ की प्रतिकूलताओं से परेशान रहने से मन बड़ा क्षुब्ध, अशान्त रहता है। हमें संसार के समस्त व्यक्ति अपने शत्रु नजर आते हैं। हमारा मन डाँवाडोल, खोया-खोया सा, निर्जीव, शिथिल मालूम होता है। अन्तःकरण अन्धकार से आवृत्त हो जाता है। निःसार वस्तुओं के चिंतन में हम निष्प्रयोजन जीवन शक्ति का अपव्यय करते हैं। निराशा, चिंता तथा ऊल जलूल बातों से विकसित होकर क्षय रोग उत्पन्न होता है, रात दिन जो व्यक्ति दुःख, शोक, रोग की कल्पनाओं से आच्छादित रहते हैं, दुःखमय स्थिति का ही चिंतन किया करते हैं, वे भिन्न-भिन्न रोगों से ग्रस्त होकर जीवन अन्त करते हैं।


Thursday, November 5, 2015

Book Kaam kala ke 2100 tips

जैसा की ग्रुप के सम्मानित सदस्यों को बताया जा चुका है कि एक नवंम्बर से हम हेल्थ टुडे में जानकारियों की एक श्रंखला प्रारंभ कर रहे है इसी क्रम में हमने १ नवम्बर से १५ नवम्बर तक सेक्स एजुकेशन विषय पर जानकारी प्रारंभ की है| वास्तव में हमने चिकित्सा शिविर के दौरान ७५ प्रतिशत लोगों को सेक्स समस्या से जूझते पाया है| दुःख की बात ये नजर आई की बड़े से बड़ा पढ़ा लिखा समझदार व्यक्ति भी इश्तिहारी नीम हकीम के जाल में फंसकर अपनी समस्या और बढ़ा लेता है| हम इस श्रंखला को सकारात्मक सोच के साथ प्रारंभ करना चाह रहे है| मै  दो विषय में अदिस्नातक (एम.डी.)हूँ| पंचकर्म एवं भूतविधा(मनोचिकित्सा/गृहचिकित्सा)| मनोचिकित्सा में मेरा एक विषय रहा मनुष्य में असामान्य सेक्स व्यवहार और रोग| इस अध्यन के दौरान मुझे बहुत कुछ जानकारी पता चली| इस ग्रुप में डाबर के निदेशक डॉ.दुर्गा प्रसाद भी है जो की वाजीकरण में अदिस्नातक है| वाजीकरण मतलब सेक्सोलोजिष्ट होना| अभी मेरे साथी चिकित्सकों ने महिला यौन अंगो के बारे में जानकारी प्रारंभ की है| मैंने सेक्स एजुकेशन पर हिंदी में एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है कामकला २१०० टिप्स यह पुस्तक राजा पॉकेट बुक्स ने प्रकाशित की है | इस पुस्तक के ५ एडिशन अब तक बिक चुके है | मैंने चिकित्सा के दौरान हमेशा ये पाया है की यौन रोग या सेक्स सम्बंधित समस्याएं केवल असामान्य सोच से उपजती है लेकिन लोग समाधान दवाओं में खोजते रहते है और सेक्स समस्या से जीवनपर्यंत जूझते रहते है| मैंने यह पाया है की ज्यादातर पुरुष कभी भी स्त्री के शरीर को और मन को समझ ही नहीं पाता है वह स्त्री को हमेशा अपने द्रष्टिकोण से देखता और तौलता रहता है| अब मै स्त्री शरीर में यौन संबंधों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अंगों की जानकारी देता जिनका पयार्प्त ध्यान रख कर स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए यौन जीवन को अधिक दीर्घायु बनाये रख सकते है|⁠⁠

Tuesday, November 3, 2015

Male Sexual Anatomy


MALE SEXUAL ANATOMY
MALE EXTERNAL GENITALIA:


PENIS AND SCROTUM
Penis
(A) Circumcised



















(B) Uncircumcised



(C) Erect
















The penis (shaft) and scrotum (balls) are the external sexual organs of men.
Glans

The glans is clearly visible in illustration (A) as the head of the penis. The glans is usually covered by the prepuce unless the penis is erect, except in circumsized men, whose foreskin has been surgically removed. The glans is highly sensitive, as is the corona that connects the glans to the shaft of the penis.
Corona

The 'crown,' a ridge of flesh demarcating where the head of the penis and the shaft join.
Frenulum, Frenum

A thin strip of flesh on the underside of the penis that connects the shaft to the head.
Foreskin, Prepuce

A roll of skin which covers the head of the penis. It is rich in nerve endings. Surgical excision (removal) of the foreskin of men is called circumcision.
Urethra, Meatus

The opening at the tip of the penis to allow the passage of both urine and semen.
Smegma

A substance with the texture of cheese secreted by glands on each side of the frenulum in uncircumsized men.
Scrotum

The scrotum is a sac that hangs behind and below the penis, and contains the testes (testicles), the male sexual glands. The scrotum's primary function is to maintain the testes at approximately 34 C, the temperature at which the testes most effectively produce sperm.


MALE INTERNAL GENITALIA



Testes, Testicles

The male sexual glands, the two testes within the scrotum produce sperm and testosterone. Within each testis is a kilometer of ducts called theseminiferous tubules, the organs which generate sperm. Each testicle produces nearly 150 million sperm every 24 hours.
Epididymis

The epididymis is a 'holding pen' where sperm produced by the seminiferous tubules mature. The sperm wait here until ejaculation or nocturnal emission.
Vas Deferens

The ducts leading from the epididymis to the seminal vesicles. These are the ducts that are cut during the procedure known as vasectomy.
Seminal Vesicles

The seminal vesicles produce semen, a fluid that activates and protects the sperm after it has left the penis during ejaculation
Prostate Gland

Also produces a fluid that makes up the semen. The prostate gland also squeezes shut the urethral duct to the bladder, thus preventing urine from mixing with the semen and disturbing the pH balance required by sperm.
Corpa Cavernosa

The corpora cavernosa are the two spongy bodies of erectile tissue on either side of the penis which become engorged with blood from arteries in the penis, thus causing erection.
Ejaculatory Ducts

The path through the seminal glands which semen travels during ejaculation.
Cowper's Glands

The Cowper's glands secrete a small amount of pre-ejaculate fluid prior to orgasm. This fluid neutralizes the acidity within the urethra itself.


FREQUENTLY ANSWERED QUESTIONS
What's the average size of the penis? What are the extremes?


According to the book Mandens Krop (which is translated from English, but does not give the original title) the average is 15cm and 90% are between 13 and 18cm.

The records for a fully functional penis are 1.5cm and 30cm.
Is penis size important?


This is probably one of the most frequently asked questions on alt.sex, and that's a shame, because it's really a pointless question. Penis size is important if and only if you think it is. If you have sex with men and you desire a large penis, then penis size is important to you, and only to you. If you feel your penis should be larger, then penis size is important to you, and only to you.

Many women report that too many men are hung up on the size of their penises. The vagina is only eight to thirteen centimeters long, and even a small penis can touch every square centimeter within the vagina.
Can penis size be increased?


Yes. There are two surgical procedures to increase penis size-- the Bihari Procedure, and Fat Injection.

The Bihari Procedure consists of cutting the ligament that secures the base of the penis to the body. This gives between one-half and two inches of increased length to the penis; however, because the penis is no longer anchored to the body an erection no longer points 'up.'

Fat Injection is the process of removing fat from the backs of the thighs and injecting it into the body of the penis to make the penis thicker. Because the body rejects a significant portion of the injection this procedure may need to be repeated several times and each operation carries with it a severe risk of infection.
How do I measure my penis?


According to Harold Reed, M.D., director of the Reed Centre for Ambulatory Urological Surgery in Bay Harbor, Florida, this is the correct way to measure the length of your penis:


First, while standing, get an erection. Okay, now gently angle your, er, equipment down until it is parallel to the floor. Set your ruler against your pubic bone just above the base of the penis, and measure to the tip. Thats how the doctors do it.
My penis bends down (or left, or right).
Is there something wrong with it?


One-quarter of all penises bend in some direction and some bend downward even when erect. Unless the bend is severe or causes you pain, there is nothing wrong or abnormal about your penis. It should not interfere with sexual intercourse. Some people report that a downward-bending penis is easier to fellate.

In rare cases a condition called Peyrone's Syndrome can arise from childhood diseases. This condition is caused by scarring on one of the two corpora cavernosa within the penis, stunting its effectiveness during erection and causing the penis to bend almost 90 degrees in that direction. If you feel this may be the case, consult a urologist.
What is circumcision and why is it done?


Male circumcision is the surgical removal of the foreskin from the penis. When performed in a hospital, it is usually done shortly after birth by a doctor or midwife. Circumcisions are also given to Jewish boys by a mohel in a ceremony eight days after birth. Some Islamic boys are circumcised when they are older, around age 12. The majority of American boys are circumcised.

Common reasons for circumcision include: religious beliefs; better hygiene, "normal" or "better" appearance, and "his penis should look like his father's."

Common reasons against circumcision include: it is no longer necessary for hygienic reasons; it is a painful, barbaric practice; there is a possibility of infection or surgical error; destruction of sexual tissue reduces sexual sensitivity; "normal" or "better" appearance; and "his penis should look like his father's."
What are blue balls?


Blue Balls is a real condition! The "correct" term for blue balls is epididymitis, which is an inflammation of the epididymis.

In simple terms blue balls occurs when the epididymis get blocked up with sperm that have left the testis but not the penis. The vas deferns are the conduit for the sperm from the testis to the urethra. When they get blocked you get pain. Why blue balls and not "swollen balls," well maybe the connotation is that you balls have the "blues", or maybe its because with all that swelling some of the blood flow is restricted enough to cause some blueing of the area because of pooling blood.
Why is the prostate mentioned so often during discussions of anal sex?


The prostate is about the size of a walnut in a normal man, and is immediately behind the rectal wall about three centimeters inside the anus. It can be felt by placing one finger within the anus and feeling along the anterior wall for a round bulb. For some men, touching or rubbing this spot is extremely pleasurable; a rare few can even orgasm through this technique. Others report that the touch is painful or makes them feel as if they need to urinate.

Sexual Health : an introduction in Hindi



Sexual Health : an introduction in Hindi

Author: Dr. Kuldeep Singh Chauhan
MD (Ayurveda)
Consultant Ayurveda Physician, Marma therapist and Psychotherapist

Ayurjeevanam Sewa Samiti, Rampur



प्रकृति ने सभी कार्य को ठीक ढंग से पूरा करने के लिए किसी न किसी साधन की व्यवस्था की है जिसके द्वारा हम उस कार्य को पूरा करते हैं। इनमें से कुछ कार्य तो ऐसे होते हैं जो प्रकृति के अनुसार अपने आप चलते रहते हैं जैसे- वातावरण में परिवर्तन होना, दिन-रात होना आदि। लेकिन इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर स्त्री-पुरुष के जीवन को को बचाने के लिए उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। इसके अतिरिक्त भी स्त्री-पुरुष के शरीर में कुछ ऐसे अंग होते हैं जिनके बिना वे जी नहीं सकते हैं जैसे- हम आंखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और पैरों से चलते हैं। ठीक इसी प्रकार से स्त्री-पुरुष के वंशों में वृद्धि के लिए भी प्रकृति ने उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। जहां तक अंगों का परिचय तथा उनके महत्व का सवाल है, प्रत्येक स्त्री-पुरुष को इन अंगों को ठीक प्रकार से जानना अति आवश्यक है। आज भी बहुत से ऐसे स्त्री-पुरुष जिनको अपने साथी के पूरे अंगों के बारे में ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं है। इस कारण से वे संभोग क्रिया के समय में इन अंगों का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पाते हैं जिसके कारण से वे संभोग क्रिया के समय पूरी तरह से आनन्द नहीं ले पाते और कभी-कभी इसका भंयकर परिणाम भी भोगना पड़ता है।
सेक्स क्रिया का पूरी तरह से आन्नद लेने के लिए सभी स्त्री-पुरुष को यह जान लेना चाहिए कि यह क्रिया करने के लिए कौन-कौन से अंगों की आवश्यकता पड़ती है। स्त्री-पुरुष के बहुत से ऐसे अंग होते हैं जो एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं। जैसे कि आंख, नाक, मुंह, कान, गुर्दे, आमाशय, मस्तिष्क तथा सिर आदि। लेकिन यहां पर हम आपको यह बताना चाहेंगे कि स्त्री-पुरुषों के सेक्स अंग अलग-अलग होते हैं। इन अंगों में होने वाले इस प्रकार के भिन्नता के कारण से स्त्री-पुरुष की अलग-अलग पहंचान हो पाती है। इसलिए यह आवश्यक है की युवावस्था में ही स्त्री-पुरुषों को इन अंगों के बारे में जानकारी हो जानी चाहिए। बहुत से वैज्ञानिकों का तो यह कहना है कि युवावस्था में ही सेक्स के इन अंगों के बारे में ठीक प्रकार से जानकारी न होने के कारण से ही आगे चलकर स्त्री-पुरुष को सेक्स संबंधित मानसिक तथा शारीरिक रोगों का सामना करना पड़ता है।

Monday, November 2, 2015

Anatomy of female sex organs



FEMALE SEXUAL ANATOMY
FEMALE EXTERNAL GENITALIA:
VULVA, LABIA, and CLITORIS
(A) External View, closed


(B) External View, open and flushed.


The Vulva is the external sexual organ of women. The above view (A) shows the external view of the female vulva as normally seen when the woman is standing up. View (B) shows the vulva when it is opened, and from the top down one can clearly see the Veneris Mons, clitoral hood, clitoris, and labia minora. There are many questions about the vulva on alt.sex, and this FAQ will begin to attempt to answer some of these.


VulvaThe external female genitals are collectively referred to as The Vulva. All of the words below are part of the vulva.


Mons VenerisThe mons veneris, Latin for "hill of Venus" (Roman Goddess of love) is the pad of fatty tissue that covers the pubic bone below the abdomen but above the labia. The mons is sexually sensitive in some women and protects the pubic bone from the impact of sexual intercourse.


Labia MajoraThe labia majora are the outer lips of the vulva, pads of fatty tissue that wrap around the vulva from the mons to the perineum. These labia are usually covered with pubic hair, and contain numerous sweat and oil glands, and it has been suggested that the scent from these are sexually arousing.


Labia MinoraThe labia minora are the inner lips of the vulva, thin stretches of tissue within the labia majora that fold and protect the vagina, urethra, and clitoris. The appearance of labia minora can vary widely, from tiny lips that hide between the labia majora to large lips that protrude. The most common metaphor for the labia minora is that of a flower. Both the inner and outer labia are quite sensitive to touch and pressure.


ClitorisThe clitoris, visible in picture (B) as the small white oval between the top of the labia minora and the clitoral hood, is a small body of spongy tissue that is highly sexually sensitive. Only the tip or glans of the clitoris shows extrernally, but the organ itself is elongated and branched into two forks, the crura, which extend downward along the rim of the vaginal opening toward the perineum. Thus the clitoris is much larger than most peole think it is -- about 4" long, on avergae. The clitoral glans or external tip of the cltoris is protected by the prepuce, or clitoral hood, a covering of tissue similar to the foreskin of the male penis. During sexual excitement, the clitoris may extend and the hood retract to make the clitoral glans more accessible. On some women the clitoral glans is very small; other women may have large clitori that the hood does not completely cover.


UrethraThe opening to the urethra is just below the clitoris. It is not related to sex or reproduction, but is instead the passage for urine. The urethra is connected to the bladder. Because the urethra is so close to the anus, women should always wipe themselves from front to back to avoid infecting the vagina and urethra with bacteria.
Hymen
(A) (B) (C) (D) (E)


The above illustrations show the area between the labia minora. From top to bottom can be clearly seen the clitoris, urethral opening, and vaginal opening. A, B, and C show vaginal openings with a normal hymen, a membrane that partially covers the opening. The hymen is the traditional "symbol" of virginity, although being a very thin membrane, it can be torn by vigorous exercise or the insertion of a tampon. Illustration D shows an imperforate hymen that completely closes the vagina; this rare condition requires surgical intervention to provide for a normal flow of blood once menstruation begins. Illustration E is of a vagina in a post-partum woman (one who has given birth).


PerineumThe perineum is the short stretch of skin starting at the bottom of the vulva and extending to the anus. The perineum in women often tears during birth to accomodate passage of the child, and this is apparently natural. Some physicians may cut the perineum preemptively on the grounds that the "tearing" may be more harmful than a precise scalpel, but statistics show that such cutting in fact may increase the potential for infection.






FEMALE INTERNAL GENITALIA
VAGINA, UTERUS, OVARIES, AND G-SPOT




VaginaThe vagina extends from the vaginal opening to the cervix, the opening to the uterus. The vagina serves as the receptacle for the penis during sexual intercourse, and as the birth canal through which the baby passes during labor. The average vaginal canal is three inches long, possibly four in women who have given birth. This may seem short in relation to the penis, but during sexual arousal the cervix will lift upwards and the fornix (see illustration) may extend upwards into the body as long as necessary to receive the penis. After intercourse, the contraction of the vagina will allow the cervix to rest inside the fornix, which in its relaxed state is a bowl-shaped fitting perfect for the pooling of semen.At either side of the vaginal opening are the Bartholin's glands, which produce small amounts of lubricating fluid, apparently to keep the inner labia moist during periods of sexual excitement. Further within are thehymen glands, which secrete lubricant for the length of the vaginal canal.


"G-Spot"The word is in quotes because there is still some debate as to the existance or purpose of the G- spot. In the illustration above, what is indicated as the g-spot in fact points to a region known as the Skenes glands, the purpose of which are unknown. Despite the controversy, one fact remains-- there are many women who claim that pressure on this region of the vagina is extremely pleasurable. Usually, two fingers are used, and because the spot is deep within the tissue, some pressure may be needed. Also, because the Skenes glands are alongside the bladder, some women may found that the increased pressure makes them feel as if they need to urinate.


CervixThe cervix is the opening to the uterus. It varies in diameter from 1 to 3 millimeters, depending upon the time in the menstrual cycle the measurement is taken. The cervix is sometimes plugged with cervical mucous to protect the cervix from infection; during ovulation, this mucous becomes a thin fluid to permit the passage of sperm.


UterusThe uterus, or womb, is the main female internal reproductive organ. The inner lining of the uterus is called the endometrium, which grows and changes during the menstrual cycle to prepare to receive a fertilized egg, and sheds a layer at the end of every menstrual cycle if fertilization does not happen. The utereus is lined with powerful muscles to push the child out during labor.


OvariesThe ovaries perform two functions: the production of estrogen and progesterone, the female sex hormones, and the production of matureova, or eggs. At birth, the ovaries contain nearly 400,000 ova, and those are all she will ever have. However, that is far more than she will need, since during an average lifespan she will go through about 500 menstrual cycles. After maturing, the single egg travels down the fallopian tube, a journey of three or four days-- this is the period during which a woman is fertile and pregnancy may occur. Eggs that are not fertilized are expelled during menstruation.






FREQUENTLY ANSWERED QUESTIONS
What is the G-Spot?

The Grafenberg spot, or G-spot, is an area located within the anterior (or front) wall of the vagina, about one centimetre from the surface and one-third to one-half way in from the vaginal opening (see illustration and text). It is reported to consist of a system of glands (Skene's glands) and ducts that surround the urethra (Heath, 1984). Some authors write that you must press "deeply" into the tissue with two fingers to reach it with any effectiveness.

The significance of the G-spot is that some women (about half) report that it is a highly sensitive area that under the right conditions can be very pleasurable if stimulated. For some women, it can be a primary source of stimulation leading to orgasm during intercourse. Other women report no particular stimulation, and some say that it feels as if they need to urinate.

The G-Spot has been linked to the phenomenon known as female ejaculation. To date, there is little data about female ejaculation, although there is some speculation that it is the product of the Skene's glands.